MP: पूर्व चीफ जस्टिस ने कॉलेजियम सिस्टम पर उठाए सवाल, बोले- हाईकोर्ट में एक भी SC/ST जज नहीं

former chief justice suresh kumar kait slams collegium
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाए।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहा कि MP में 90% SC/ST/OBC आबादी के बावजूद हाईकोर्ट में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं है। DOMA सम्मेलन में उठाए बड़े सवाल।

Collegium System: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत ने देश की न्यायिक प्रणाली और कॉलेजियम सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। भोपाल में आयोजित DOMA परिसंघ के सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की 90% से अधिक जनसंख्या SC, ST और OBC वर्ग की है, लेकिन आज तक MP हाईकोर्ट में इन वर्गों से एक भी जज नियुक्त नहीं किया गया है।

कैत ने कहा, "आपका MP हाईकोर्ट 1956 का है। क्या तब से अब तक एक भी काबिल उम्मीदवार नहीं मिला? ये कॉलेजियम सिस्टम की बेईमानी है। जब तक सिस्टम में प्रतिनिधित्व तय नहीं होगा, तब तक न्याय नहीं मिलेगा।"

देशभर में सिर्फ 15-16% जज ही SC/ST/OBC वर्ग से

कैत ने पूरे देश की न्यायपालिका की स्थिति को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज देशभर के हाईकोर्ट में कुल मिलाकर SC, ST और OBC जजों की संख्या सिर्फ 15-16% है, जबकि इन वर्गों की आबादी 80-85% है। कैत ने ये भी कहा कि जब तक इस असंतुलन के खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाएगी, बदलाव संभव नहीं है।

ज्यूडिशियरी पर कोई बात नहीं करता

पूर्व जस्टिस ने कहा कि ज्यूडिशियरी पर सवाल उठाने से हर कोई बचता है, जबकि यही सबसे ताकतवर संस्था है। उन्होंने कहा कि सरकारी विभागों में आरक्षण की बात होती है, लेकिन जहां आरक्षण नहीं वहां प्रतिनिधित्व भी नहीं होता। यही असली समस्या है।

दिल्ली हाईकोर्ट में भी पहली बार बने थे SC/ST जज

कैत ने खुद का उदाहरण देते हुए बताया कि मैं दिल्ली हाईकोर्ट में पहला SC/ST वर्ग से आने वाला जज बना। आज तक मेरे बाद वहां कोई दूसरा नहीं बना है। ये सोचने की बात है कि इतनी बड़ी न्यायपालिका में ऐसा क्यों?

सभी वर्गों की बराबर भागीदारी जरूरी

कैत ने जोर देते हुए कहा कि यह देश किसी एक जाति या धर्म का नहीं है। हर वर्ग की जितनी संख्या भारी, उतनी भागीदारी भी सुनिश्चित होनी चाहिए। जब तक ये नहीं होगा, न्याय अधूरा रहेगा।

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