घर जमाई बनने से इनकार पर दुष्कर्म में फंसाया : रोहतक की घटना, 3 साल 7 महीने बाद युवक हुआ बेदाग साबित

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सांकेतिक फोटो।
घर जमाई बनने से इनकार पर रोहतक के युवक को दुष्कर्म के केस में फंसाया गया। 3 साल 7 महीने बाद कोर्ट ने किया बरी। जानें इस सनसनीखेज मामले की पूरी कहानी।

घर जमाई बनने से इनकार पर दुष्कर्म में फंसाया : एक चौंकाने वाले मामले में हरियाणा के रोहतक की अदालत ने एक युवक को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया है, जिसे कथित तौर पर घर जमाई बनने से इनकार करने पर फंसाया गया था। तीन साल और सात महीने तक चले इस कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार युवक को न्याय मिला है। पॉक्सो एक्ट के स्पेशल जज राज गुप्ता की अदालत ने इस मामले की सुनवाई की। साल 2021 में दर्ज हुए इस मामले में युवक को गिरफ्तारी के बाद से ही जेल में रहना पड़ा था। अब अदालत के 45 पन्नों के फैसले ने युवक पर लगे दुष्कर्म के दाग को धो दिया है, जिससे उसे खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला है।

2021 में थाने में शिकायत दर्ज कराई थी

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार साल 2021 में एक व्यक्ति ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली नाबालिग बेटी का स्कूल से लौटते समय 21 वर्षीय युवक ने अपहरण कर लिया। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए लड़की को बरामद कर लिया और उसे कोर्ट में पेश किया, जहां उसने जज के सामने अपने बयान दर्ज कराए।

लड़की ने बदले अपने बयान

कोर्ट में पहली बार बयान देते हुए लड़की ने कहा था कि इस घटना में लड़के की कोई गलती नहीं थी और वह अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी। इसके बाद पुलिस ने लड़की को उसके परिवार वालों को सौंप दिया। हालांकि, कुछ दिनों बाद लड़की के पिता ने फिर से शिकायत दर्ज कराई। इस बार उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी बेटी ने उन्हें बताया है कि आरोपी ने उसका अपहरण किया था और उसके साथ गलत काम भी किया। लड़की ने यह भी कहा कि लड़के ने उसे इस बारे में किसी को भी बताने पर जान से मारने की धमकी दी थी, जिसके डर से उसने पहले जज के सामने सच नहीं बताया था। इस नई शिकायत के आधार पर पुलिस ने युवक के खिलाफ अपहरण, दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था।

शादी करना चाहते थे, लिव-इन के कागजात बनवाए थे

आरोपी के बचाव पक्ष के वकील डॉ. दीपक भारद्वाज ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि लड़का और लड़की के परिवार वाले एक-दूसरे को पहले से जानते थे और उनकी शादी की बातचीत भी चल रही थी। हालांकि, लड़की का परिवार चाहता था कि युवक शादी के बाद उनके घर पर ही रहे (घर जमाई बने)। लड़के ने अपने बूढ़े माता-पिता और दादी को छोड़कर अलग रहने से इनकार कर दिया था। इसी वजह से दोनों घर से चले गए थे। वकील ने बताया कि लड़की ने पहले जज के सामने अपनी मर्जी से लड़के के साथ जाने की बात स्वीकार की थी, लेकिन बाद में परिवार के दबाव में आकर उसने दुष्कर्म के आरोप लगाए। उन्होंने यह भी बताया कि मामला दर्ज होने से पहले लड़का और लड़की ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए एक सहमति पत्र भी बनवाया था, जो उनके बीच आपसी सहमति को दर्शाता है।

कोर्ट का फैसला : पीड़िता की गवाही भरोसे लायक नहीं

अदालत ने अपने 45 पन्नों के फैसले में कहा कि पीड़िता की एकमात्र गवाही पर तभी भरोसा किया जा सकता है जब कोर्ट उसकी सत्यता के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हो। इस मामले में, अदालत ने पाया कि लड़की जब लड़के के साथ गई थी तो वह 17 साल 10 महीने और 20 दिन की थी, यानी वह बालिग होने के करीब थी। अदालत में पूछताछ के दौरान लड़की ने कहा कि आरोपी उसे शादी का झांसा देकर ले गया था, लेकिन उसने शादी नहीं की। उसने यह भी कहा कि अगर लड़का उससे शादी कर लेता तो वह दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाती।

अदालत ने इन विरोधाभासी बयानों और बचाव पक्ष के तर्कों को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता की गवाही पूरी तरह से भरोसे लायक नहीं है और अभियोजन पक्ष युवक के खिलाफ दुष्कर्म के आरोपों को साबित करने में विफल रहा है। इसी आधार पर अदालत ने युवक को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया, जिससे उसे तीन साल और सात महीने बाद न्याय और आजादी मिली। यह मामला रिश्तों की जटिलता और झूठे आरोपों के गंभीर परिणामों को उजागर करता है।

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