तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट: पंजाब हाथ जोड़ेगा, हरियाणा-दिल्ली की बुझेगी प्यास; जानिये कैसे?

Tulbul Navigation Project
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भांखड़ा बांध की तस्वीर। 

पंजाब चेतावनी दे रहा है कि हरियाणा को एक बूंद पानी नहीं देगा, वहीं दिल्ली और हरियाणा सरकार इसे बदले की राजनीति बता रही है। क्या हो सकता है सॉल्यूशन, आगे जानिये...

पाकिस्तान जहां सिंधु जल समझौता बहाल करने के लिए गिड़गिड़ा रहा है, वहीं भारत ने फिर से चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध के सभी तट बंद कर दिए हैं। कारण यह है कि पाकिस्तान तक एक बूंद पानी नहीं जानी चाहिए। हालांकि 8 मई को बगलिहार बांध के द्वार खोल दिए गए थे क्योंकि बाढ़ आ सकती थी। अब भारत को पानी की आवश्यकता है, लिहाजा फिर से तट बंद कर दिए गए हैं। जानकारों की मानें तो नियमित अंतराल पर बगलिहार बांध के तट खुलते और बंद होते रहेंगे, लेकिन जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने जो सुझाव दिया है, उसके चलते पंजाब से लेकर हरियाणा-दिल्ली तक की प्यास बुझ सकती है। आइये बताते हैं कैसे...

सीएम उमर उब्दुल्ला ने दिया ये सुझाव

जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने सुझाव दिया है कि भारत सरकार को अब तुलबुल नेविगेशन बैराज परियोजना पर काम शुरू कर देना चाहिए। इस परियोजना की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी, लेकिन पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि का हवाला देकर इस परियोजना को रद्द करने का दबाव बनाया था। उन्होंने पूछा कि अब सिंधु जल समझौता अस्थायी रूप से निलंबित है, तो क्या हम इस परियोजना को फिर से शुरू कर पाएंगे। ऐसा हुआ तो हमें झेलम का उपयोग करने की परमिशन का लाभ मिलेगा, वहीं डाउनस्ट्रीम बिजली परियोजनाओं के लिए भी बिजली उत्पादन में सुधार होगा, विशेषकर सर्दियों में।

क्या है तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट

तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट झेलम नदी पर नौवहन लॉक कम नियंत्रण ढांचा बनाया गया था। यह ढांचा 440 फीट लंबा था। इसकी क्षमता यह 3 लाख बिलियन क्यूकिब मीटर पानी स्टोर करने की थी। इस पर 20 करोड़ खर्च हुए, लेकिन पाकिस्तान के दबाव की वजह से यह परियोजना पूरी नहीं हो सकी। झेलम में बाढ़ आने की वजह से निर्माण को भी नुकसान होता रहा, जिससे झेलम का पानी कश्मीर में नहीं रूका और पाकिस्तान तक बहता रहा। अब सिंधु जल समझौत रद्द है, लिहाज सीएम उमर अब्दुल्ला इस तुलबुल प्रोजेक्ट परियोजना को फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं।

पंजाब, हरियाणा से दिल्ली तक की बुझेगी प्यास

मीडिया रिपोर्ट्स में जानकारों के हवाले से बताया गया है कि भले ही सिंधु जल समझौता रद्द कर दिया गया है, लेकिन समय-समय पर बांध की क्षमता के अनुरूप पाकिस्तान के लिए पानी खोलना पड़ेगा। इससे बचने के लिए भारत सरकार को नदी परियोजनाएं लानी होंगी, ताकि पानी को आखिरी झोर तक संभाला जा सके। इससे पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की सरकारों में पानी को लेकर सियासी घमासान भी नहीं होगी।

वर्तमान में आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार जहां धमकी दे रही है कि हरियाणा को एक बूंद पानी नहीं देगी, वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली हरियाणा और दिल्ली सरकार आरोप लगा रही है कि पंजाब सरकार बदले की राजनीति कर रही है। इससे दिल्ली हरियाणा के लोगों को पानी से वंचित किया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अगर सिंधु जल समझौता रद्द करने के बाद जो पानी आएगा, उन्हें नदी परियोजनाओं के तहत सही तरह से डायवर्ट किया जाए तो न केवल पंजाब बल्कि हरियाणा और दिल्ली तक पेयजल किल्लत का निदान संभव है।

क्या है सिंधु जल समझौता?

भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ था। इसके तहत पूर्वी हिस्से की नदियां रावी, ब्यास और सतलुज के पानी पर भारत का हक रहेगा, वहीं पश्चिमी हिस्से की नदिया सिंधु, चिनाब और झेलम के 20 फीसद पानी पर भारत का अधिकार रहेगा। तात्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस उम्मीद के साथ पाक के राष्ट्रपति अयूब खान से समझौता किया था कि अगर पानी बहेगा तो फिर खून नहीं बहेगा।

लेकिन पांच साल बाद ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया। अब पीएम नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी है कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकता है। यही वजह है कि सिंधु जल समझौता बहाल करने की मांग को खारिज कर दिया गया है।

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