Operation Sindoor: 1965... भारत-पाकिस्तान युद्ध के रेलवे योद्धाओं की वीर कहानी, हर साल लगता है मेला

भारतीय रेलवे ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही सीमाओं को भी मजबूत करने में अहम योगदान दिया है। सीमाओं पर राशन पहुंचाना हो, सैन्य वाहन या फिर हथियार पहुंचाना हो, रेलवे ने इस काम को बाखूबी अंजाम दिया है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात करें तो रेलवे के 17 बहादुर जवानों को जान गंवानी पड़ी थी। आज भारत फिर से युद्ध स्थिति में है। ऐसे में हम इन जवानों की अनसुनी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे जानने के बाद आप इन्हें सलाम करने को विवश हो जाएंगे।
1965 के भारत-पाक युद्ध में 17 जवानों ने गंवाई जान
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रेलवे ने अहम भूमिका निभाई। रेलवे ने सीमाओं तक गोला बारूद और राशन इत्यादि भेजने का काम किया। ऐसे में पाकिस्तान की वायुसेना ने इस रेलवे पटरी को क्षतिग्रस्त कर दिया था ताकि भारतीय सेना तक बारूद और खाना न पहुंच सके। भारतीय रेलवे ने ठानी कि इस क्षतिग्रस्त पटरी को ठीक किया जाएगा। 10 सितंबर 1965 को बाड़मेर से छह वैगन वाली ट्रेन को मुनाबाब के लिए रवाना किया गया।
इससे पहले कि यह ट्रेन मुनाबाब स्टेशन तक पहुंचती, उससे तीन किलोमीटर पहले ही पाकिस्तानी वायुसेना ने इस ट्रेन पर बमबारी कर दी। भाप का इंजन फट गया। इस इंजन में 3 लोको पायलट और 14 रेलवे कॉस्टेबल सवार थे, जो कि शहीद हो गए। बताया जाता है कि यह धमाका इतना भीषण था कि छह जवानों के चिथड़े उड़ गए और शव तक नहीं मिला।
रेलवे के इन कर्मचारियों ने 1965 के युद्ध में शहादत दी
रेलवे कर्मचारी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की ओर से फायरिंग में रेलवे कर्मचारी नंदराम गेगमेंट, भंवरिया कांटेवाला, मधा, माला गैंगमैन, हुकमाराम, चिमाराम, रावताराम, लालाराम, जेहाराम, खीमराज, देवी सिंह खलासी, चुन्नीलाल ड्राइवर, माधो सिंह फोरमैन, मुल्तानपुर पेंटर, करना राम ट्रॉली मैन, हेमाराम खलासी और चिमना सिंह फायरमैन शहीद हुए थे। इनकी याद में इस रेलवे स्टेशन पर शहीद स्मारक बनाया है। बताय जाता है कि यह देश का पहला शहीद स्मारक है। हर साल 10 सितंबर की तारीख को रेलवे के 17 कर्मचारियों की याद में मेला लगता है।
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