JNU News: जेएनयू छात्रा 'हिंसक व्यवहार' के आरोपों से मुक्त, हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी को दी ये सलाह

दिल्ली हाईकोर्ट से जेएनयू स्टूडेंट को मिली राहत।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की एक छात्रा को 8 साल बाद न्याय मिला है। जेएनयू प्रशासन ने 2017 में इस छात्रा पर एसोसिएट डीन और छात्र से हाथापाई करने, शारीरिक हमला करने और मौखिक दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाकर शिकायत दर्ज कराई थी। छात्रा ने इन आरोपों को चुनौती दी तो 6000 रुपये जुर्माना भरने का आदेश दे दिया। आखिर में छात्रा ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। अब हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए छात्रा के खिलाफ जेएनयू प्रशासन की कार्रवाई को खारिज कर दिया है।
हॉस्टल में चेकिंग के बाद जेएनयू में प्रदर्शन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2017 में जेएनयू हॉस्टल की चेकिंग हुई, जिसके बाद स्टूडेंट्स ने प्रदर्शन किया। छात्रा अदिति चटर्जी के खिलाफ एसोसिएट्स डीन और छात्र पर शारीरिक हमला करने, मौखिक दुर्व्यवहार करने और हाथापाई करने के आरोप में शिकायत दर्ज कराई गई। चटर्जी का आरोप था कि उस समय उनके साथ शिकायत की प्रति साझा नहीं की। चटर्जी ने आरोप लगाया कि उन्हें शिकायत की प्रति बाद में दिखाई और कहा कि तुरंत जवाब दाखिल करें। उन्होंने जवाब देने के लिए शिकायत प्रति रखने का आग्रह किया, जिसे स्वीकार नहीं किया गया।
कोई भी साक्ष्य या दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया
अदिति चटर्जी के अनुसार, उन्हें किसी भी प्रकार का दस्तावेज या साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं कराया, जो कि आरोप लगाए गए हैं। इसके बावजूद किसी भी गवाह से जिरह करने का भी अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने इसे मनमाना रवैया बताते हुए पक्ष रखा तो उनके खिलाफ 6 हजार रुपये जुर्माना राशि भरने के आदेश दे दिए। इसके बाद उन्होंने 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट में अपील कर न्याय की मांग की।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले की सुनवाई करते हुए शिकायतकर्ता अदिति चटर्जी के खिलाफ जेएनयू प्रशासन की कार्रवाई को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ लाए गए सबूतों का खुलासा और बचाव की तैयारी के लिए उचित समय दिया जाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का हिस्सा है। संक्षेप में यह भारत के संविधान 14 में निहित समानता के मौलिक अधिकार को लागू करता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि प्रशासनिक कार्यों की न्यायिक समीक्षा की बात आती है, तो यह न्यायालय अपील में नहीं बैठता है। न्यायालय प्रशासिक अधिकारियों के निर्णय को अपने निर्णय से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है, लेकिन निर्णय अनुचित प्रक्रिया का परिणाम होता है, तो हस्तक्षेप किया जाता है।
हाईकोर्ट ने शिकायकर्ता से शिकायत की प्रति, नोटिस की प्रति, मुख्य सुरक्षा कार्यालय की रिपोर्ट, सुरक्षाकर्मियों के बयान उपलब्ध न कराना आदि दर्शाता है कि उन्हें बचाव का उचित अवसर नहीं दिया गया। हाईकोर्ट ने अदिति चटर्जी को राहत देते हुए जेएनयू प्रशासन की कार्रवाई को खारिज कर दिया।