स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: महानता को कौन प्राप्त करता है?

स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: 'जिस व्यक्ति ने इन्द्रियों पर नियंत्रण, समय का आदर और आचरण की मर्यादा को आत्मसात् कर लिया, उसके लिए इस संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में आज जानिए कि महानता को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को जीवन में क्या आत्मसात् करना चाहिए?
मनुष्य जीवन की सफलता केवल उसकी प्रतिभा, बुद्धिमत्ता या बाह्य संसाधनों पर निर्भर नहीं करती, अपितु यह उस आंतरिक अनुशासन और संयम पर आधारित होती है, जो जीवन को दिशा और स्थिरता प्रदान करता है। अनुशासन वह मूलभूत तत्व है, जो व्यक्ति को उसकी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
जिस व्यक्ति ने इन्द्रियों पर नियंत्रण, समय का आदर और आचरण की मर्यादा को आत्मसात् कर लिया, उसके लिए इस संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है। इतिहास साक्षी है कि सत्य और अनुशासन के पथ पर चलने वालों ने ही महानता को प्राप्त किया है।
जब हम जीवन की मर्यादाओं और संयम का उल्लंघन करते हैं, तो हमारा नैतिक बल क्षीण हो जाता है। सफलता हमसे दूर होने लगती है, और हम अपने ही विकारों के बंदी बन जाते हैं। अतः यह आवश्यक है कि हम अपने भीतर एक ऐसा अनुशासन विकसित करें, जो बाह्य प्रेरणाओं से नहीं, बल्कि आत्मबोध और आचरण की शुद्धता से संचालित हो।
प्राकृतिक जगत भी इस सत्य को प्रकट करता है। हर नदी की नियति समुद्र तक पहुंचना है, परन्तु वही नदियां अपने लक्ष्य तक पहुंचती हैं, जो तटबंधों का अनुशासन बनाए रखती हैं। जो नदी अपने किनारों को तोड़ देती है, वह मार्ग भटक जाती है और अपने लक्ष्य से विमुख हो जाती है। इसी प्रकार, मानव जीवन भी उसी समय सार्थक बनता है, जब वह सीमाओं में रहकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है।
भगवान विष्णु के सहस्त्रनामों में एक नाम है- “नियमो यमः ..”। इसका अर्थ है कि परमात्मा, जो सर्वशक्तिमान हैं, वे भी नियमों और अनुशासन में बंधे हुए हैं। जब ईश्वर स्वयं भी नियमों का पालन करते हैं, तो हमें यह विचार करना चाहिए कि मनुष्य के लिए अनुशासन कितना आवश्यक है।
जीवन के व्यवहारिक पक्ष में भी अनुशासन का विशेष महत्व है। समय पर नींद लेना, संतुलित आहार और नियमित दिनचर्या न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्थिरता भी प्रदान करते हैं। गहरी और सम्यक निद्रा से शरीर में नवचेतना उत्पन्न होती है, पाचन शक्ति संतुलित रहती है, और हमारी ऊर्जा पुनः जाग्रत होती है।
अतः यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आत्म-अनुशासन ही मनुष्य की सफलता का मूलमंत्र है। संयम, मर्यादा और नियमों का पालन कर ही हम उस ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं, जहां जीवन सार्थक, शान्तिपूर्ण और प्रेरणादायी बनता है।
हमारी यह सदिच्छा होनी चाहिए कि हम जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुशासन, संयम और मर्यादा को न केवल अपनाएं, बल्कि उन्हें अपने चरित्र का स्थायी अंग बना लें। यही पथ हमें व्यक्तिगत उन्नति और सामाजिक समरसता की ओर ले जाएगा।