डॉ. अश्वनी महाजन का लेख : 2026 तक जर्मनी से आगे होंगे हम

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जर्मनी जो इस समय जीडीपी की दृष्टि से भारत से एक स्थान ऊपर है, वहां जीडीपी में 0.4 प्रतिशत की दर से गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में भारत की पिछले 6 महीने की जीडीपी 142.33 लाख करोड़ रुपये यानि 1.736 खरब डॉलर है।

जर्मनी जो इस समय जीडीपी की दृष्टि से भारत से एक स्थान ऊपर है, वहां जीडीपी में 0.4 प्रतिशत की दर से गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में भारत की पिछले 6 महीने की जीडीपी 142.33 लाख करोड़ रुपये यानि 1.736 खरब डॉलर है। यदि जीडीपी में वर्तमान दर से वृद्धि होती है तो भारत की वार्षिक जीडीपी डॉलरों में 3.5 खरब डॉलर पहुंच जाएगी, और जर्मनी की वर्तमान जीडीपी 4.1 खरब डॉलर में यदि अनुमानों के अनुसार 0.4 प्रतिशत की कमी दर्ज होती है तो भारत की जीडीपी की तुलना में जर्मनी की जीडीपी (4.08 खरब डालर) से मात्र 600 अरब डालर ही कम रह जायेगी। यदि विकास की वर्तमान दर कायम रहती है, तो भारत ढाई साल से भी कम समय में जर्मनी की जीडीपी को पार कर सकता है।

गत 30 नवम्बर को भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही, जुलाई से सितम्बर के दौरान भारत की जीडीपी 7.6 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ी, जो 2022-23 की दूसरी छमाही की संवृद्धि दर 6.2 प्रतिशत से कहीं ज्यादा रही। गौरतलब है कि इस तिमाही में भारत की चालू कीमतों पर जीडीपी 71.66 लाख करोड़ रही, जिसका मतलब यह है कि भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय इस तिमाही में 2.01 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है। सितंबर माह में डॉलर की औसत बाजार कीमत 82.5 रूपये प्रति डालर के हिसाब से आज भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2436 डॉलर प्रतिवर्ष है। यदि जीडीपी की अर्ध-वार्षिक ग्रोथ के आँकड़े देखें तो 2023-24 मार्च से सितंबर की जीडीपी 2022-23 के वर्ष के पूर्वार्ध की तुलना में ग्रोथ 7.7 प्रतिशत रिकॉर्ड की गयी। यदि जीडीपी ग्रोथ की यह रफ़्तार जारी रहती है तो जनसंख्या की अनुमानित वृद्धि के साथ सितंबर 2030 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय 3600 अमेरिकी प्रति वर्ष पहुँच सकती है। ग़ौरतलब है कि वर्ष 2014 में प्रति व्यक्ति आय मात्र 1500 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष ही थी।

भारत में जीडीपी की संवृद्धि में हालांकि सभी क्षेत्रों का योगदान रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तिमाही की मूल्य संवृद्धि में ग्रोथ का सबसे बड़ा हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग का रहा है, यानि 13.9 प्रतिशत। ग्रोथ की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा ग्रोथ का क्षेत्र कंस्ट्रक्शन का रहा है, जहां 13.3 प्रतिशत की दर से संवृद्धि देखी गई है। तीसरा क्षेत्र बिजली, गैस, जलापूर्ति और अन्य उपयोगी सेवा का है, जहां 10.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज की गई है। उसके बाद खनन है, जहां 10 प्रतिशत की दर से संवृद्धि दर्ज की गई। देखा जाए तो सेवा क्षेत्र में ग्रोथ बहुत उल्लेखनीय नहीं है। चिंता का विषय यह है कि इस तिमाही में कृषि क्षेत्र में भी ग्रोथ बहुत कम 1.2 प्रतिशत दर्ज की गई है। लेकिन यह किसी मौलिक दोष के कारण नहीं, बल्कि मानसून की कमी के कारण है। मैन्युफैक्चरिंग में ग्रोथ भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत की नीति की सफलता की ओर इंगित करती है। बड़ी संख्या में नई उत्पादन इकाइयां हर क्षेत्र में लग रही हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक, टेलीकॉम, मशीनरी, सोलर, प्रतिरक्षा, केमिकल, खिलौने, वस्त्र सहित विभिन्न प्रकार के उत्पाद शामिल हैं। भारत सरकार की उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन की नीति के कारण अब जल्द ही लैपटॉप, सेमीकंडक्टर इत्यादि का उत्पादन भी शुरू हो सकता है। डिजिटल क्षेत्र में भी नए उद्यम लग रहे हैं।

यदि कुछ खास संकेतकों को देखा जाए तो कोयला, स्टील, सीमेंट, खनन, बिजली उत्पादन इत्यादि में भी खासी संवृद्धि दर दिखाई दे रही है। कोयले के उत्पादन में 16.3 प्रतिषत वृद्धि दर्ज हुई है, तो सीमेंट उत्पादन में 10.2 प्रतिषत वृद्धि हुई है। स्टील उत्पादन में 19.5 प्रतिषत वृद्धि दिखाई दे रही है। खनन में भी 11.5 प्रतिषत संवृद्धि एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों की भी संख्या बढ़ी है और रेलवे के भी यात्रियों के आंकड़े बेहतर संख्या बता रहे हैं। हवाई यात्रियों की संख्या में 22.7 प्रतिषत वृद्धि हुई है। बैंकों में जमा भी 11.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जबकि बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों में 13 प्रतिशत की दर से वृद्धि दर्ज हुई है। ये सभी आंकड़े देश में बेहतर होते आर्थिक वातावरण की ओर इंगित कर रहे हैं। समझना होगा कि मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है। मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार की संभावनाएं सेवा क्षेत्र से कहीं ज्यादा होती है।

भारत में जहां आर्थिक संवृद्धि की दर 7.6 प्रतिशत है, चीन में यह मात्र 4.9 प्रतिशत दर्ज की गई है, रूस में 5.5 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका में यह 5.2 प्रतिशत। गौरतलब है कि जर्मनी जो इस समय जीडीपी की दृष्टि से भारत से एक स्थान ऊपर है, वहां जीडीपी में 0.4 प्रतिशत की दर से गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में भारत की पिछले 6 महीने की जीडीपी 142.33 लाख करोड़ रुपये यानि 1.736 खरब डॉलर है। यदि जीडीपी में वर्तमान दर से वृद्धि होती है तो भारत की वार्षिक जीडीपी डॉलरों में 3.5 खरब डॉलर पहुंच जाएगी, और जर्मनी की वर्तमान जीडीपी 4.1 खरब डॉलर में यदि अनुमानों के अनुसार 0.4 प्रतिशत की कमी दर्ज होती है तो भारत की जीडीपी की तुलना में जर्मनी की जीडीपी (4.08 खरब डालर) से मात्र 600 अरब डालर ही कम रह जायेगी। यदि विकास की वर्तमान दर कायम रहती है, तो भारत ढाई साल से भी कम समय में जर्मनी की जीडीपी को पार कर सकता है।

हमारे ग्रोथ का अनुभव कुछ खट्टा-मीठा रहा है। पिछले तीन दशको में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े तो उत्साहजनक रहे लेकिन रोज़गार के मोर्चे पर हम पिछड़ते रहे। उसका कारण यह रहा कि हमारी जीडीपी ग्रोथ में सेवाओं का योगदान ज़्यादा, लेकिन मैन्यूफ़ैक्चरिंग का योगदान कहीं कम रहा। देखा जाए तो 1995-96 में जहां जीडीपी में मैन्यूफ़ैक्चरिंग का योगदान 21.5 प्रतिशत था, वह 2017-18 तक घटकर मात्र 16.5% ही रह गया। मैन्यूफ़ैक्चरिंग में जहाँ रोज़गार की संभावनाएं सेवा क्षेत्र से कई गुना ज़्यादा होती है, का हिस्सा जीडीपी में घटने का असर रोज़गार वृद्धि पर भी पड़ा। युवा भारत की जनसांख्यिकी का फ़ायदा मिलने की बजाए देश में युवा जनसंख्या को रोज़गार न मिलने के कारण समस्याएँ और ख़तरे बढ़ने लगे। ग़ौरतलब है कि देश में बेरोज़गारी की दर लगातार बढ़ती रही। कोविड 19 के प्रकोप के बाद यह समस्या पहले से ज़्यादा विकट हो गई थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मैन्यूफ़ैक्चरिंग को प्रोत्साहन देने के कारण इस क्षेत्र में कुछ ग्रोथ दिखाई देने लगी है।

हालांकि नई श्रृंखला के हिसाब से जीडीपी में मैन्यूफ़ैक्चरिंग का हिस्सा 2020-21 में 18.3% से बढ़ता हुआ वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही तक सिर्फ़ 18.7% तक ही पहुँचा है, लेकिन इस दौरान भारत सरकार के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी की दर में जुलाई-सितंबर 2022 में 7.7 प्रतिशत से घटती हुई जुलाई-सितंबर 2023 में 6.6% ही रह गई है। कार्मिक जनसंख्या का अनुपात भी शहरी क्षेत्रों में 44.5 प्रतिशत से बढ़ता हुआ 46 प्रतिशत तक पहुँच गया है। शहरों में बढ़ते रोज़गार के आंकड़े मैन्यूफ़ैक्चरिंग ग्रोथ के सुपरिणामों की तरफ़ इंगित कर रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर सभी ग्लोबल रेटिंग एजेंसियां का रुख भी सकारात्मक है। संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) , विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन आदि सभी ग्लोबल संगठन भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ को लेकर आशान्वित हैं, ये सभी भारत की आर्थिक नीतियों के समर्थक हैं। हमारी जीडीपी दर सबसे तेज है।

डॉ. अश्वनी महाजन (लेखक जानेमाने अर्थशास्त्री व दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज में प्रोफेसर हैं , ये उनके अपने विचार हैं।)

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