Basant Panchami 2025: आखिर क्यों इतना खास होता है वसंत पंचमी का पर्व, जानिए धार्मिक महत्ता

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Basant Panchami 2025: वैसे तो वसंत पंचमी का पर्व अपने देश में ही नहीं कई अन्य देशों में भी अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। लेकिन इस दिन मुख्य रूप से मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इसकी विविधता-धार्मिक महत्ता पर एक दृष्टि।

Basant Panchami 2025: भारतीय संस्कृति में वसंत पंचमी पर्व का बहुत महत्व है। वसंत पंचमी विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की आराधना का पर्व है। यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। वसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। यह ऋतु परिवर्तन के संधिकाल का समय होता है, जब ठंड कम होने लगती है और प्रकृति में हर तरफ हरियाली होती है और विभिन्न तरह के फूलों का खिलना शुरू हो जाता है।

धार्मिक-आध्यात्मिक महत्ता:
भारत में वसंत पंचमी के पर्व का धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व भी है, क्योंकि हम भारतीय वसंत पंचमी को ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। यही वजह है कि इस दिन विद्यार्थी, सभी तरह के कलाकार और लेखक मां सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं, पीला भोजन खाते हैं और महिलाएं सजने-संवरने के लिए पीले फूलों का इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि पीला रंग वसंत और उत्सव का प्रतीक होता है।

पड़ोसी देशों में वासंती उत्सव:
अगर भारतीय उपमहाद्वीप के अपने पड़ोसी देशों की बात करें तो नेपाल में यह श्रीपंचमी के नाम से मनाया जाता है, यहां भी देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और बच्चों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश दिलाया जाता है। बांग्लादेश में इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बांग्लादेश में महिलाएं और लड़कियां पीले वस्त्र, आमतौर पर पीली साड़ी पहनती हैं। पाकिस्तान में भी वसंत ऋतु के उत्सव को उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन पाकिस्तान में लोग पतंगबाजी का लुत्फ लेते हैं।

हर प्रदेश में अलग छटा:
जहां तक अपने देश की बात है तो इस दिन देवी सरस्वती की प्रतिमाओं या चित्रों की पूजा की जाती है। इस पूजा में विद्यार्थी अपनी किताबों और लेखन सामग्री को मां सरस्वती के समक्ष रखते हैं। बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और देश के कई दूसरे हिस्सों में भी इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। खाने में मीठे चावल, खिचड़ी और पीले रंग के हलवे को पसंद किया जाता है। पंजाब और हरियाणा में भी इस दिन खूब पतंगबाजी का आनंद लिया जाता है, तो उत्तर प्रदेश से लेकर त्रिपुरा तक सरस्वती पूजा की जाती है। स्कूलों और कॉलेजों में तो बड़े पैमाने पर इस दिन सरस्वती पूजा का सांस्कृतिक पर्व संपन्न होता है। लोकगीत गाए जाते हैं और मां सरस्वती की प्रार्थना और वंदना की जाती है। राजस्थान में इन दिनों का नजारा बेहद रंगीन होता है। हर तरफ खेतों में सरसों फूले होते हैं, इसलिए दूर तक प्रकृति चमकदार पीली आभा से भरपूर दिखती है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक नृत्य करती हैं। जबकि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में इस दिन खूब लोकनृत्य और सामाजिक मेल-जोल दिखता है।

प्रकृति से जुड़ाव का संदेश:
वसंत पंचमी केवल धार्मिक पर्व नहीं है, यह प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने और जीवन में उत्साह और नई ऊर्जा के संचार का सांस्कृतिक पर्व भी है। भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी अनेक परंपराएं हैं, लेकिन सबके मूल में उद्देश्य ज्ञान और प्रकृति का उत्सव मनाना होता है। क्योंकि जब वसंत पंचमी का यह पर्व आता है तो उत्तर पश्चिम और पूर्वी भारत के एक बड़े हिस्से में खेतों में सरसों के फूल खिले होते हैं और रबी की दूसरी फसलें भी तेजी से बढ़ रही होती हैं, इसलिए प्रकृति में जहां तक नजर जाती है धरती धन-धान्य से परिपूर्ण नजर आती है।

विदेशों में भी मनाते हैं पर्व:
वसंत पंचमी का यह पर्व वैश्विक पर्व भी है। दुनिया के कई देशों में वसंत ऋतु से मिलते-जुलते पर्व मनाए जाते हैं। मसलन चीन में वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए चंद्र नववर्ष या स्प्रिंग फेस्टिवल मनाया जाता है। इसमें भी प्रकृति के परिवर्तन और नई ऊर्जा का स्वागत किया जाता है। जबकि जापान में इसे हनामी या चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल के नाम से जानते हैं, क्योंकि जापान में वसंत ऋतु के दौरान ही चेरी ब्लॉसम के फूल खिलते हैं और इसका उत्सव मनाया जाता है। इसे प्रकृति के सौंदर्य से नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। ईरान में इस दिन नवरोज फेस्टिवल मनाया जाता है, यह पारसी नववर्ष और वसंत के आगमन का प्रतीक होता है, जो ईरान और मध्य एशिया में धूमधाम से मनता है। यूरोप में भी वसंत पंचमी से मिलता-जुलता पर्व मनाया जाता है, वहां इसे मई डे कहा जाता है। यह वास्तव में वसंत के स्वागत के लिए प्रकृति की मनुहार करने वाला पर्व होता है।

आस्था
शैलेंद्र सिंह

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