Car Market: पहली बार कार खरीदने वाले सेकंड हैंड गाड़ियों से क्यों बना रहे दूरी, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Car Market: भारत में सेकंड हैंड कारों का बाजार काफी बड़ा है, लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट से यह सामने आया है कि पहली बार कार खरीदने वाले लोग अब पुरानी कारों से दूरी बना रहे हैं। Park+ रिसर्च लैब्स की स्टडी के मुताबिक, पिछले एक साल में 77% नए खरीदारों ने सेकंड हैंड के बजाय नई कार खरीदने को प्राथमिकता दी। इसका सबसे बड़ा कारण पुरानी कारों के बाजार में भरोसे की कमी बताया गया है।
क्यों बढ़ा है नई कारों की ओर झुकाव?
- महंगी कीमतें: पुरानी कारों से दूरी बनाने वाले 81% खरीदारों का मानना है कि सेकंड हैंड कारों की कीमतें कई बार नई कारों के बराबर या उससे भी ज्यादा होती हैं, खासकर 10 लाख रुपये से कम की रेंज में। इस सेगमेंट में सेकंड हैंड डीलिंग सबसे ज्यादा होती है, लेकिन डेलॉयट की रिपोर्ट भी इसी बात की पुष्टि करती है कि कीमतें कई बार तर्क से परे होती हैं।
- फाइनेंसिंग और सर्विस सपोर्ट: आज की तारीख में नई कारों के लिए आसान फाइनेंसिंग विकल्प, आकर्षक स्कीम्स और बेहतर आफ्टर-सेल्स सर्विस खरीदारों को अधिक लुभा रही है, जिससे सेकंड हैंड कारों का आकर्षण घटा है।
नकारात्मक अनुभव ने भी बनाई दूरी
पुरानी कार खरीदने का विचार रखने वाले 65% लोगों ने आखिरी वक्त पर अपना फैसला बदल दिया। इसके पीछे कई कारण सामने आए, जैसे दोस्तों या जानकारों की चेतावनियां, ऑनलाइन मिले नकारात्मक रिव्यूज़, या खुद का पहले का खराब अनुभव। इसके अलावा, 43% लोगों ने खरीद प्रक्रिया में आने वाली कानूनी पेचीदगियों को जिम्मेदार ठहराया, जबकि 22% ने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) ट्रांसफर में देरी को प्रमुख वजह बताया। वहीं, 11% खरीदारों ने खराब डिजिटल रेटिंग्स को भी निर्णय बदलने का कारण माना।
तकनीक नहीं, अब भी ‘पर्सनल टच’ में भरोसा
दिलचस्प बात यह है कि 73% नए खरीदार अब भी लोकल डीलर्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं, बजाय ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के। इसका प्रमुख कारण है आमने-सामने बात करने की सुविधा, पारदर्शिता और मानवीय जुड़ाव, जो बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म नहीं दे पाते।
सबसे बड़ी चुनौती – कानूनी पेच
सेकंड हैंड कार बाजार में सबसे बड़ी रुकावट डॉक्युमेंटेशन की दिक्कतें, फर्जी लिस्टिंग, और मालिकाना हक का अधूरा ट्रांसफर है। खरीदारों का मानना है कि इस सेक्टर में सुधार की सख्त ज़रूरत है, जिसमें स्पष्ट नियम, पारदर्शी प्रक्रियाएं और एक ऐसा सिस्टम शामिल हो जो लेन-देन को आसान, भरोसेमंद और सुरक्षित बना सके।
(मंजू कुमारी)